4 October 2024

जहां चाह वहां राह, ये बात एक बार फिर साबित कि देवप्रयाग क्षेत्र में बसे इस गांव के लोगों ने

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उत्तराखंड जो कि हिमालय क्षेत्र में बसा हुआ एक खूबसूरत प्रदेश है चारों तरफ नदियां बर्फ की गिरी हुई पहाड़ियां और खूबसूरत गांव और हिल स्टेशन मौजूद है।लेकिन इन सबके बीच में एक कड़वी हकीकत यह भी है कि उत्तराखंड के ऐसे हजारों गांव है जहां पर पीने का पानी मौजूद नहीं है, खासतौर पर गांव के आसपास की गाढ़-गदरे और प्राकृतिक स्रोत धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं।कई तो पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं। और जब हम उत्तराखंड के देवप्रयाग क्षेत्र की बात करते हैं तो गंगा का उद्गम स्थल होने के बावजूद देवप्रयाग में ऐसे कई गांव है जहां पर पीने का पानी मुहैया नहीं है। इसके साथ ही वहां पर मौजूद प्राकृतिक स्रोत भी पूरी तरह से सूख चुके हैं।और एक ऐसा ही गांव जो देवप्रयाग क्षेत्र में बसा है, भंडाली।

भंडाली मुश्किल से 25 से 30 किलोमीटर दूर देवप्रयाग से है। इसके साथ ही अलकनंदा नदी भी इस गांव से ज्यादा दूर नही है। साथ ही हिमालय की गोद में बसा ये गांव बहुत खूबसूरत भी है। लेकिन हकीकत इस गांव की भी वही रही है। यहां पर मौजूद प्राकृतिक स्रोत कई सालों पहले सुख गए थे। गांव में पानी के नल तो हमेशा से थे लेकिन उनमें पानी नही आता था। धीरे – धीरे गांव में पलायन बढ़ा और जो गांव 200 से ज्यादा परिवार का था वहां पर अब सिर्फ कुछ दर्जन परिवार ही रह गए। वहीं अब जाकर गांव में पानी आ चुका है लेकिन बरसात के समय पानी गंदा आता है और अन्य मौसम में भी पानी की शुद्धता उस स्तर की नही रहती की उसे बिना किसी ट्रीटमेंट के पीया जा सके।

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दूसरी तरफ गांव के कुछ लोगों ने मिलकर वो कर दिखाया है जिसे करने की इच्छा तो सबकी होती है पर करने की हिम्मत बहुत कम लोग दिखा पाते हैं।

गांव के कुछ लोगों ने मिलकर कई दशकों से बंद पड़े प्राकृतिक स्रोत को दुबारा जीवित कर दिया है। इसके लिए उन्होंने न किसी सरकारी मदद का इंतजार किया न किसी भू वैज्ञानिक की टिप्स ली। बस अपने अनुभव का इस्तेमाल किया और जीवित कर दिया कई दशकों से निर्जीव हुए प्राकृतिक स्रोत को।

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ग्रामीण बताते हैं की इस काम को करने में उन्हें सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक का समय लगा। गांव के ही मकान सिंह लिंगवाल, धीरेन्द्र तिवाड़ी, लखीराम पूंडोरा, जीतेन्द्र उपाध्याय, अजय तिवाड़ी, इन्द्रदेव तिवाड़ी ने मिलकर पहले तय किया कि कैसे इस प्राकृतिक स्रोत को जीवित कर सकते हैं, फिर लग गए काम पर और मेहनत रंग लाई।

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गांव के ही निवासी धीरेंद्र तिवाड़ी ने बताया की “ये स्रोत पौराणिक है, दसको पुराना है। लेकिन सड़क आने के बाद यहां ऊपर से मलबा गिरने से ढक गया था बाद में लोगों का आना जाना भी नहीं हुआ और सड़क से कनेक्टविटी भी ख़त्म हो गई, जिस कारण रास्ता बिलकुल बंद हो गया था। झाड़िया उग आयी थी वहीं आज गांव के ही मकान सिंह लिंगवाल, धीरेन्द्र तिवाड़ी लखीराम पूंडोरा, जितेंद्र उपाध्यआ अजय तिवाड़ी, इंद्रदेव तिवाड़ी आदि ने सबसे पहले स्रोत तक (कनेक्टविटी ) रास्ता बनाया थमाले से झाड़ी काटी, कुलु फावड़ा से रास्ता बनाया.. फिर स्रोत की जगह पथर मिटी से सही दिशा बना कर एक धारा का निर्माण किया। उसके बाद मंत्रोचरण किया फिर सब नहाए वस्त्र धुले शुद्ध जल अपने अपने बर्तनो मे घर लेकर आए।

अब गांव के लोगों को साफ पानी मिलेगा।

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