क्या आपको पता है लगभग 15,550 फिट की ऊँचाई पर स्थित पार्वती कुण्ड के बारे मे, और क्या धार्मिक महत्व है इसका?
चमोली:
हिमालय की गोद में स्थित बाराहोती स्थान, उत्तराखंड के चमोली जिले में लगभग 15,550 फिट की ऊँचाई पर स्थित एक सुंदर और पवित्र स्थल है जो धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। सुन्दर चारागाहों से घिरे इस स्थान का महत्व विभिन्न कारणों से है, जिनमें से प्रमुख हैं- इसकी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक स्थल, पौराणिक मान्यताएं और यहाँ की समर्द्ध सांस्कृतिक विरासत। जहाँ बाराहोती की प्राकृतिक सुंदरता यहाँ आने वाले श्रृद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती है वहीं यहाँ की सुन्दर पर्वत श्रृंखलाएं, हरियाली व स्वच्छ जलवायु लोगों को आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराती है।
देवभूमी उत्तराखंड में स्थित इस बाराहोती क्षेत्र में विभिन्न स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा की जाती है तथा इन देवी-देवताओं को यहाँ की भूमि और लोगों का रक्षक माना जाता है। इनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्रद्धालु लम्बे समय से इनकी पूजा करते आ रहे हैं। इस क्षेत्र का प्राचीन काल से ही धार्मिक मान्यताओं, लोककथाओं और किंवदंतियों का समृद्ध इतिहास रहा है। इस जगह से जुड़ी विभिन्न दैवीय घटनाओं और आशीर्वादों की कहानियां यहाँ परम आध्यात्मिक सुख की अनुभूति कराती हैं। इस क्षेत्र में स्थित प्राकृतिक झरनों, पर्वतों और नदियों को पवित्र माना जाता है तथा ये यहाँ की स्थानीय पारंपरिक प्रथाओं के महत्वपूर्ण हिस्सा है।
लोक कथाओं और किंवदंतियों के अनुसार मान्यता है कि माहाभारत काल में पांडवों ने बाराहोती के आस-पास स्थित क्षेत्रों में तपस्या और साधना की थी। यहाँ के कई स्थानों पर पांडवों के अस्तित्व और उनकी साधना के आध्यात्मिक चिन्ह आज भी यहाँ पाए जाते हैं। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, बाराहोती क्षेत्र में भगवान शिव और माता पार्वती ने तपस्या भी की थी तथा यहाँ निवास किया था। इसलिए यह स्थान भगवान् शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ माता पार्वती के नाम से बने पार्वती कुंड का विशेष धार्मिक महत्व है व इस कुंड का जल पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है। पार्वती कुंड यात्रा के दौरान श्रद्धालु सुंदर प्राकृतिक दृष्यों का आनंद लेते हुए यहाँ के मनोरम परिवेश में आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं।
बाराहोती मलारी और नीति गांव के क्षेत्र में नागों की भी पौराणिक कथाएँ विशेष रूप से प्रचलित हैं। माना जाता है कि यहाँ नाग देवताओं का वास है इसलिए यह भूमि नागों की आराधना के लिए पवित्र मानी गई है। नाग पंचमी के अवसर पर यहाँ विशेष पूजा-अर्चना की जाती है तथा आसपास के क्षेत्रों में कई धार्मिक त्यौहारों और पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन लोग, नाग देवताओं की पूजा करते हैं तथा उन्हें दूध, फूल और चावल अर्पित करते हैं। मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग देवताओं की पूजा करने से कष्टों का निवारण होता है।
पार्वती कुंड हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह स्थल न केवल हमारे धार्मिक विश्वास का केन्द्र है बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है। यहाँ के स्थानीय लोग विभिन्न पर्वों और त्यौंहारों के दौरान हर वर्ष मई से अक्टूबर माह में देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं।
बाराहोती तक पहुँचने के लिए जोशीमठ से मलारी की दूरी लगभग 61 किलोमीटर और मलारी से बाराहोती तक की दूरी लगभग 44 किलोमीटर है। श्रद्धालुओं की यात्रा को सुगम और सुचारु करने हेतु इस इलाके के मलारी, कोसा, घमशाली, बम्पा, कैलाशपुर, फरकिया और नीति गाँव में अतिथिगृह/ होम स्टे मौजूद हैं जहाँ पर स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का अनुभव कर सकते हैं। इस पवित्र जगह की यात्रा करने हेतु श्रद्धालुओं को सिविल जिला प्रशासन से इनर लाइन परमिट(ILP) लेने की जरुरत पडती है, जिसमें लगभग 15 से 20 दिन का समय लग जाता है। यह अनुमति उप जिला अधिकारी के द्वारा दी जाती है। इनर लाइन परमिट के लिए आधार कार्ड, पहचान पत्र और वाहनों का पंजीकरण प्रमाण पत्र आदि दस्तावेजों की जरुरत पडती है। साथ ही हर श्रद्धालु के पास शारीरिक रूप से स्वस्थ होने का मेडिकल फिटनेस प्रमाणपत्र होना भी अनिवार्य है।
बाराहोती की यात्रा सिर्फ एक यात्रा नही बल्कि जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव है। इस स्थान की प्राकृतिक सौंदर्यता और परिवेश यहाँ धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देते हैं। यहाँ हर साल श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं जिससे यहाँ के स्थानीय लोगों और अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। साथ ही स्थानीय प्रशासन और भारतीय सेना ने भी यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनायें शुरू की हैं। बाराहोती का महत्व केवल यहाँ के धार्मिक स्थलों और पौराणिक कथाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ आने वाले लोगों को यहाँ मिलने वाला आध्यात्मिक सुख और आत्मा की शांति इसे सबसे महत्वपूर्ण बनाती है व यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता, शांत वातावरण और रमणीय स्थलों का आभास लोगों को आत्मिक शांति और ख़ुशी प्रदान करती है।