क्या है अंब्रेला एक्ट, जिससे रुकेगी निजी विश्वविद्यालयों की मनमानी, मिलेगा स्थानीय लोगों को रोजगार
उत्तराखंड में आज कई सारे विश्वविद्यालय संचालित किया जा रहे हैं इसमें से ज्यादातर प्राइवेट विश्वविद्यालय हैं। जहां सरकारी विश्वविद्यालय में सरकार का पूरी तरह से नियंत्रित होता है और वह पूरी तरह से राज्यपाल की देखरेख में चलते हैं, तो दूसरी तरफ निजी विश्वविद्यालयों की अपनी एक गाइडलाइन होती है और वह पूरी तरह से अपने हिसाब से चलते हैं। और इसी वजह से पिछले लंबे समय से प्रदेश में एक मांग उठती रही है कि निजी विश्वविद्यालय की मनमानी रोकने के लिए उन्हें भी सरकार के अधीन होना चाहिए। या कहें तो उन्हें भी सरकार को जवाब देना ही होगा।
और इसी को लेकर अब प्रदेश सरकार ने अपनी कैबिनेट बैठक में जो प्रस्ताव पास किया और उसपर कैबिनेट की मुहर भी लगी, वह है अंब्रेला एक्ट।
प्रदेश में चल रहे सभी विश्वविद्यालयों के लिए अब एक कानून होगा, और अब यह विश्वविद्यालय अलग-अलग एक्ट से नहीं चलेंगे।
अंब्रेला एक्ट के तहत सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेज में 25 प्रतिशत सीट स्थानीय छात्र-छात्राओं के लिए अब आरक्षित होंगी।
साथ ही 25 प्रतिशत वह पद जो की तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के होंगे उन पर भी स्थानीय लोगों की ही तैनाती होगी।
अंब्रेला एक्ट के तहत अब राज्य के सभी प्राइवेट विश्वविद्यालय भी अन्य कॉलेजों को संबद्धता दे सकेंगे।
अभी तक कॉलेज का संबद्धता पत्र राजभवन से जारी होता था।
इस वक्त प्रदेश के कई राज्य विश्वविद्यालय में कुलपति की रिटायरमेंट की आयु 65 वर्ष है पर अंब्रेला एक्ट लागू होने के बाद यह आयु 70 वर्ष हो जाएगी।
निजी विश्वविद्यालय अभी तक अपने स्तर पर कुलपतियों का चयन करते आ रहे थे लेकिन अंब्रेला एक्ट लागू होने के बाद इनका चयन सर्च कमेटी करेगी जो की UCG के नियमों का पालन करेगी।
अंब्रेला एक्ट में जो बड़ा प्रावधान किया गया है उसके तहत अब निजी विश्वविद्यालय में कुलपति के पद को खत्म कर दिया गया है जबकि इस वक्त जो व्यक्ति होंगे वह अब अध्यक्ष कहलाएंगे। जबकि अब राज्यपाल इन सभी विश्वविद्यालयों के कुलाध्यक्ष होंगे।