सरकारी कर्मचारियों के लिए सरकार का फरमान, 5000 से ज्यादा की खरीदारी का देना होगा अब हिसाब

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार एक बात दोहरा रहे हैं, और वह कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वहीं भ्रष्टाचार कई रूप में पनपता है और उसी में से एक रूप है सरकारी कर्मचारी का आय से अधिक संपत्ति का होना पिछले एक साल में सैकड़ो ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया है। ऐसे में वह कर्मचारी जो रिश्वत लेते हैं उसको खर्च कैसे करते हैं यह भी एक बड़ा विषय है, और इसी को देखते हुए अब उत्तराखंड सरकार का एक अजीबोगरीब फरमान सामने आया है। सरकारी फरमान के अनुसार अब हर सरकारी कर्मचारियों को पांच हजार से ज्यादा की खरीदारी पर अपने विभागध्यक्ष को बताना होगा कि उन्होंने खरीदारी कहां से की और पैसे कहां से आए।
सरकार द्वारा जो पत्र जारी हुआ है उसमें लिखा है।
आपका ध्यान उत्तराखण्ड राज्य कर्मचारियों की आचरण नियमावली, 2002 की ओर आकृष्ट किया जा रहा है, जिसमें राज्याधीन सेवाओं के अन्तर्गत कार्यरत लोक सेवकों से अपेक्षित आचरण, व्यवहार एवं मर्यादा इत्यादि के सम्यक निर्वहन हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश निर्धारित किये गये हैं। उक्त आचरण नियमावली के नियम 22 में चल, अचल तथा बहुमूल्य सम्पत्ति क्रय किये जाने के सम्बन्ध निम्न प्रावधान हैं:-
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जब कि समुचित प्राधिकारी को इसकी पूर्व जानकारी हो, या तो स्वयं अपने नाम से या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम से, पट्टा, रेहन, क्रय, विक्रय या भेंट द्वारा या अन्यथा, न तो कोई अचल सम्पत्ति अर्जित करेगा और न उसे बेचेगाः
परन्तु किसी ऐसे व्यवहार के लिये, जो किसी नियमित और ख्यातिप्राप्त (Reputed) व्यापारी से मिन्न व्यक्ति द्वारा सम्पादित किया गया हो, समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होगा।
(2) कोई सरकारी कर्मचारी जो अपने एक मास के वेतन अथवा 5,000 रु०, जो भी कम हो, से अधिक मूल्य की किसी चल सम्पत्ति के संबंध में क्रय-विक्रय के रूप में या अन्य प्रकार से कोई व्यवहार करता है, तो ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट तुरन्त समुचित प्राधिकारी को करेगाः
प्रतिवन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय किसी ख्यातिप्राप्त व्यापारी या अच्छी साख के अभिकर्ता के साथ या द्वारा या समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति से, इस प्रकार का कोई व्यवहार नहीं करेगा।
(3) प्रथम नियुक्ति के समय और तदुपरान्त हर पांच वर्ष की अवधि बीतने पर, प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, सामान्य रूप से नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी को, ऐसी सभी अचल सम्पत्ति की घोषणा करेगा, जिसका वह स्वयं स्वामी हो, जिसे उसने स्वयं अर्जित किया हो या जिसे उसने दान के रूप में पाया हो या जिसे वह पट्टा या रेहन पर रखे हो, और ऐसे हिस्सों की या अन्य लगी हुई पूंजियों की घोषणा करेगा, जिन्हें वह समय-समय पर रखे या अर्जित करे, या उसकी पत्नी, या उसके साथ रहने वाले या किसी प्रकार भी उस पर आश्रित उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा रखी गई हो या अर्जित की गई हो। इन घोषणाओं में सम्पत्ति, हिस्सों और अन्य लगी हुई पूंजियों के पूरे व्योरे दिये जाने चाहिये।
(4) समुचित प्राधिकारी, सामान्य या विशेष आदेश द्वारा, किसी किसी भी समय, किसी सरकारी कर्मचारी को यह आदेश दे सकता है कि वह आदेश में निर्दिष्ट अवधि के भीतर, ऐसी चल या अचल सम्पत्ति का, जो उसके पास अथवा उसके परिवार के किसी सदस्य के पास रही हो या अर्जित की गई हो।
सरकारी आदेश से कर्मचारियों में नाराजगी
इस आदेश को लेकर कर्मचारियों में नाराजगी है. उत्तराखंड एसटी-एससी एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष करम राम का कहना है कि यह आदेश हास्यास्पद है. इस आदेश को सरकार को वापस लेना चाहिए. करम राम ने बताया कि आज के महंगाई के दौर में 10 तरह के टैक्स लगते हैं. बच्चों के लिए पत्नी के लिए जो भी सामान खरीदने जाएंगे तो वह 5 हजार से कम का नहीं आएगा.
फेडरेशन के अध्यक्ष ने कहा कि अब बीवी के लिए अगर साड़ी लेनी हो तो उसके लिए भी क्या विभागाध्यक्ष से अनुमति लेनी होगी? बच्चों के लिए कपड़े हैं वह भी खरीदने के लिए क्या अनुमति लेनी होगी.
एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष बोले- एक लाख होनी चाहिए लिमिट
उत्तराखंड एसटी एससी एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष करम राम कहते हैं कि अगर यह आदेश राज्य के मुख्य सचिव ने जारी किया है इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस तरह का आदेश जारी करने से पहले कर्मचारी संगठनों या उनके प्रतिनिधियों से बातचीत करनी चाहिए थी. उनका मानना है कि कम से कम इसकी लिमिट 5 हजार रुपये नहीं होनी चाहिए इसकी लिमिट 1 लाख रुपये होनी चाहिए.
प्लॉट, वाहन की खरीदारी पर पहले भी देनी होती थी जानकारी
कर्मचारियों का कहना है कि कर्मचारी आचरण नियमावली में अगर उनको प्लॉट या कोई वाहन खरीदना हो तो उसकी जानकारी और अनुमति वे पहले विभाग अध्यक्ष से लेते थे. लेकिन अब हर महीने 5000 से अधिक की जो भी चल संपत्ति खरीदने के लिए उनको अपने विभागाध्यक्ष से अनुमति लेनी पड़ेगी, इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों को अपना साल भर का चल और अचल संपत्ति का हिसाब देना पड़ता था.
जानिए क्या होती है चल और अचल संपत्ति
चल सम्पति का मतलब है ऐसी संपत्ति जिसे एक-जगह से दूसरे जगह पर आसानी से ले जाया जा सके. जैसे- आभूषण, लैपटॉप, पंखा, वाहन और अन्य.अचल संपत्ति वैसी संपत्ति जो एक जगह से दूसरी जगह पर नहीं ले जाई जा सकता है उसे अचल संपत्ति कहते हैं, जैसे- घर, कारखाना, प्लॉट.
2002 में बनी थी नियमावली
सरकारी कर्मचारियों द्वारा चल, अचल तथा बहुमूल्य संपत्ति की खरीद-फरोख्त को लेकर वर्ष 2002 में बनाई गई राज्य कर्मचारियों की आचरण नियमावली को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए हैं. आचरण नियमावली कहती है-
आचरण नियमावली के नियम 22 के अन्तर्गत कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जब कि समुचित प्राधिकारी को इसकी पूर्व जानकारी हो, या तो स्वयं अपने नाम से या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम से, पट्टा, रेहन, क्रय, विक्रय या भेंट द्वारा या ‘अन्यथा, न तो कोई अचल सम्पत्ति अर्जित करेगा और न उसे बेचेगा.
एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष बोले- एक लाख होनी चाहिए लिमिट
उत्तराखंड एसटी एससी एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष करम राम कहते हैं कि अगर यह आदेश राज्य के मुख्य सचिव ने जारी किया है इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस तरह का आदेश जारी करने से पहले कर्मचारी संगठनों या उनके प्रतिनिधियों से बातचीत करनी चाहिए थी. उनका मानना है कि कम से कम इसकी लिमिट 5 हजार रुपये नहीं होनी चाहिए इसकी लिमिट 1 लाख रुपये होनी चाहि.